* एक ट्रक मुरुम* (लघुकथा)
एक-आध बिस्किट का पैकेट हो तो निकाल दो बेटी ! सामने काम कर रही उन मजदूर महिलाओं को देने का मन हो रहा है-------।
कोई जवाब नहीं आया बहु की ओर से।
खिन्न मन रामदीन बाहर हाल में आकर बैठ गया, जहाँ बेटा लैपटॉप पर व्यस्त था।
सामने बन रहे मकान में सुबह से काम में जुटी तीन महिला मजूर सांझ तक की दैनिक मेहनत के बाद अभी-अभी आई एक ट्रक मुरुम मिट्टी नींव भराई में डालने के पैसे ठेकेदार से तय कर तगारियों से भीतर डालने में प्राणप्रण से जुटी थी।
अक्टूबर का अंतिम सप्ताह, एक स्वेटर की गुलाबी ठंड, ऐसे में भी वे तीनों वृद्ध महिलाएं अपने बदन से बहते पसीने में खुशियों कुछ सुखद बूँदों की आस में पूरे तालमेल के साथ रिदम में कदमताल कर रही थी।
"युद्ध स्तर पर जुटी इन तीनों की कष्टप्रद मेहनत को देख व्यथित रामदीन के मन में कारुणिक उथल-पुथल मची है"।
"दीवाली के मात्र तीन दिन शेष हैं, रात के साढ़े नौ बज रहे हैं, क्या, इन्हें त्यौहार की तैयारियां नहीं करनी है?, अब तो इन्हें भूख भी लगी होगी, घर जा कर भी इन्हें कौन सा पका-पकाया मिल ही जायेगा, अभी तो काफी मुरुम फेंकना बाकी है, फिर इन्हें कल भी तो सुबह जल्दी आने का ठेकेदार कह गया है"।
"ऐसे में पानी आधार कुछ खाने को दे सकूँ तो कुछ तो राहत मिलेगी इन्हें "।
"पर बहू ने तो मेरी बात पर ध्यान ही नहीं दिया", फिर से अन्धड़ विचारों का, उद्विग्न रामदीन के अंदर,। "क्या घर में अब मेरी स्थिति इतनी दयनीय हो गई है कि, किसी जरुरतमंद को अपनी मर्जी से न सही पूछकर भी कुछ नहीं कर सकूं"।
इसी बीच पापा जी, खाना खा लीजिए, बहू ने भोजन की थाली सामने रख दी। बेमन से पहली बार का परोसा खतम कर हाथ धोते हुए रामदीन बेटे से मुखातिब हुआ---------
बेटे,---एक-दो पैकेट बिस्किट के घर में हो तो सामने सुबह से काम कर रही इन मज़दूरों को दे दूं ।
बिस्किट क्यों देना है इन्हें------? बेटे ने प्रतिप्रश्न किया।
बस ऐसे ही मन में आया मेरे, तुम लोगों की इच्छा नहीं है तो रहने दो।
नहीं, मैं मना नहीं कर रहा हूँ, पापाजी, बस वैसे ही कि, क्यों देना है ,आज ---
रामदीन बेटे को कुछ कहने जा ही रहा था कि, इसी बीच बहू तीन-चार पैकेट रामदीन को देते हुए बोली--ये लीजिए पापाजी, किसी और उलझन की वजह से उस समय आपकी बात समझ नहीं पाई थी, क्षमा करेंगे।
वे तीनों महिलाएं बिस्किट खाने के बाद खुश हो पुनः अपने काम में जुट गई थी और रामदीन संतुष्ट भाव लिए अपने शयन कक्ष की की ओर .........।
सुरेश तन्मय
226, माँ नर्मदे नगर, बिलहरी
मंडला रोड़, जबलपुर,
म.प्र.- 482020
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