कैसे भरें लगान, रोटियों को तरसे सरपंचजी
फिर इस बरस ना खेतों में, बादल बरसे सरपंचजी
गांवों के रंगीन चित्र सब, राजभवन में चिपके हैं
देख हमारी प्रगति को शहरी हरषे सरपंचजी
पिछले सालों की कीमत पर, मूंगफली हड़पी हमसे
बढ़े भाव तेलों के कैसे, किस दर से सरपंचजी
गाड़ी भर भरकर कपास, हमने मंडी में पहुंचाया
लठ्ठे के कुर्ते को भी, बच्चे तरसे सरपंचजी
तुमको तो पैसे मिलते हैं, ग्राम सुधार योजना के
फिर फोकट में मज़दूरी क्यों, घर घर से सरपंचजी
कल बनवारी शहर गया था, घर आकर बीमार हुआ
मिले जेब में उसकी, दंगों के परचे सरपंचजी
बैठ कुर्सियों पर संसद में, निर्विरोध बिल पास किया
वेतन खुद की थाली में, खुद ही परसे सरपंचजी
पटवारीजी बता रहे थे, मुझे नहीं विश्वास मगर
सरपंची के अब कितने दिन, और बचे सरपंचजी.
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